राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज महाराष्ट्र के नासिक के मांगीतुंगी में विश्वशांति अहिंसा सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस दौरान राष्ट्रपति ने कहा कि जैन तीर्थंकरों ने धर्म को पूजा से बाहर निकालकर व्यवहार या आचरण में लाने का मार्ग दिखाया और यह समझाया कि मानव के प्रति करुणावान और संवेदनशील होना ही धर्म है। दुनिया भर में धर्म के नाम पर हो रही हिंसा को दूर करने में ये शिक्षाएं आज पहले से भी अधिक प्रासंगिक हैं।
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि भारत अनादि काल से शान्ति और अहिंसा का अनुगामी और प्रणेता रहा है। यहां सभी धर्मों में अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और शान्ति की स्थापना के लिए मैत्री, संतुलन और सहिष्णुता का मार्ग सुझाया गया है। भगवान महावीर ने अपरिग्रह को विशेष महत्व दिया था।अपरिग्रह का अर्थ है- जीवन निर्वाह के लिए केवल अति आवश्यक वस्तुओं को ग्रहण करना। मानव-जाति अपनी निरन्तर बढ़ती जरूरतों के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन कर रही है। प्रकृति के साथ सम्यक व्यवहार की सीख हमें जैन परम्परा से मिलती है।
राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि महाराष्ट्र की धरती सामाजिक समरसता, आध्यात्म औऱ सद्भावना की धरती रही है। इस धरती से संत तुकाराम, संत नामदेव, गुरु रामदास, वीर शिवाजी, महात्मा ज्योतिबा फूले, बाबा भीमराव अंबेडकर जैसे विभूतियों ने देश को सामाजिक सौहार्द और देश प्रेम का संदेश दिया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि महाराष्ट्र के नासिक जिले का विशेष महत्व है। नासिक प्रत्येक 12 वर्ष पर कुंभ स्नान के लिए, श्री त्रंयबकेश्वर महादेव के ज्योतिर्लिंग के लिए और श्री शिरडी धाम के लिए देश दुनिया में जाना जाता है। यह क्षेत्र धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। नासिक की इसी भूमि पर श्री मांगी-तुंगी का यह परम पावन स्थल है।